Tazmeen of Dil Dard Se Bismil Ki Tarah Lot Raha Ho

अश्क़ों का मेरी आँख में तूफ़ान उठा हो
और जिस्म तेरे शहर की मिट्टी से अटा हो
ये हाल मेरा सारा जहाँ देख रहा हो
दिल दर्द से बिस्मिल की तरह लोट रहा हो
सीने पे तसल्ली को तेरा हाथ धरा हो

मुजरिम की तरह आप के क़दमों में पड़ा हो
होंटों पे फ़क़त सल्ले ‘अला, सल्ले ‘अला हो
हो जाए अगर ऐसा तो मत पूछिए क्या हो
गर वक़्त-ए-अजल सर तेरी चौखट पे झुका हो
जितनी हो क़ज़ा एक ही सज्दे में अदा हो

आ’माल ही देने लगें जिस वक़्त गवाही
चेहरे पे गुनाहों के सबब छाए सियाही
मुजरिम की करें आप अगर पुश्त-पनाही
ढूँढा ही करे सद्र-ए-क़यामत के सिपाही
वो किस को मिले जो तेरे दामन में छुपा हो

जो चाँद के टुकड़े करे, सूरज को फिरा दे
जो गालियाँ सुन कर भी हिदायत की दु’आ दे
इक दूध के प्याले में जो सत्तर को पिला दे
मँगता तो है मँगता, कोई शाहों में दिखा दे
जिस को मेरे सरकार से टुकड़ा न मिला हो

महबूब-ए-ख़ुदा, अहमद-ए-मुख़्तार कुछ ऐसा
है ही वो यतीमों का तरफ़दार कुछ ऐसा
या’नी मेरे आक़ा का है रुख़्सार कुछ ऐसा
आता है फ़क़ीरों पे उन्हें प्यार कुछ ऐसा
ख़ुद भीक दें और ख़ुद कहें मँगता का भला हो

तुम जिस से नज़र फेर लो, नाराज़ ख़ुदा हो
दोज़ख़ में जिसे जलना हो वो तुम से जुदा हो
मुम्किन ही नहीं पूरी कभी हम्द-ओ-सना हो
तुम ज़ात-ए-ख़ुदा से न जुदा हो, न ख़ुदा हो
अल्लाह को मा’लूम है, क्या जानिए क्या हो

ना’त-ख़्वाँ:
जमील गोंडवी
सैफ़ रज़ा कानपुरी

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