हर वक़्त तसव्वुर में मदीने की गली होऔर याद मुहम्मद की मेरे दिल में बसी हो ए काश! तसव्वुर में मदीने की गली होऔर याद–ए–मुहम्मद भी मेरे दिल में बसी हो दो सोज़–ए–बिलाल, आक़ा! मिले दर्द रज़ा सासरकार! ‘अता ‘इश्क़–ए–उवैस–ए–क़रनी हो ए काश! मैं बन जाऊँ मदीने के मुसाफ़िरफिर रोती हुई तयबा को बारात चली हो ए काश! मदीने में मुझे मौत यूँ आएचौखट पे तेरी सर हो, मेरी रूह चली हो जब ले के चलो गोर–ए–ग़रीबाँ को जनाज़ाकुछ ख़ाक मदीने की मेरे मुँह पे सजी हो जिस वक़्त नकीरैन मेरी क़ब्र में आएँउस वक़्त मेरे लब पे सजी ना’त–ए–नबी हो आक़ा का गदा हूँ, ए जहन्नम ! तू भी सुन लेवो कैसे जले जो कि ग़ुलाम–ए–मदनी हो आक़ा की शफ़ा’अत से तो जन्नत ही मिलेगीए काश! कि क़दमों में जगह उन के मिली हो...
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ہر وقت تصور میں مدینی کی گلی ہو اور...
Har Waqt Tasawwur Mein Madine Ki Gali Ho Naat...
Shahed Mar Nahi Sakta Hussain Zinda HaiNabi Ki Aal...
This naat Hasbi Rabbi JallAllah is most listening naat nowadays...